Saturday, June 5, 2010

बेरोजगार

उस अँधेरे गॉंव में,
अँधेरे का सूरज बनकर  वो बिजली का लठ्ठा खड़ा है |
जिसकी रोशनी में एक वो पढ़ कर बढ़ा है |
लठ्ठे कि अब अपनी एक कहानी बन गई है |
चुस्त शरीर, होशियार दिमाग और ईमानदारी
उसकी जवानी बन गई है |
गॉंव से बाहर वह पढ़ने शहर पहुंचा है |
सुविधा के रुमाल से अपनी मेहनत का  पसीना पोंछा है |
डिगरी पाने के बाद नौकरी एक जरुरत बन गई है |
चुस्त शरीर, होशियार दिमाग और ईमानदारी,
अब मुसीबत बन गई है |
डिगरी को शीशे में मढ़वाकर, वह डिगरीदार हो गया है |
मेहनत से सींचा गया पेड़, फल देने से पहले खार हो गया है |
हाँ वह बेकार हो गया है, बेरोजगार हो गया है |
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अतुल, राधास्वामी ! 


 

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