Tuesday, April 12, 2011

विजेता मिस्त्र


मिस्त्र की  ताकत बने
हाथ जो सब साथ थे |
मुठ्ठियाँ सब कस सकीं,
उंगलियां सब साथ थीं ||
वजीफा है अब आँखों की रौनक,
रौनकें अब आसान हैं |
देखती निगाहें अब तुम्हें हैं,
बात ये मन में बसा लो |
जो ताकत अब तक थी हाथ में,
उसे अब पैरों में समा लो |
बिखरना अब न है यहीं पर,
कदम अब आगे बढ़ा लो |
चमक जो है आँखों में पैदा,
उसे सम्मुख अब सजा लो |
कदम – ब –कदम बढ़ना है आगे,
क़दमों को ताकत बना लो |
जीतते हैं जंग कैसे थोड़ा ये हमको भी सिखा दो ||
अतुल कुमार मिश्र “राधास्वामी”

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