मेरी कवितायें मेरी अभिव्यक्ति हैं, किन्तु आप भी अपना चेहर देख सकते हैं ऐसा मेरा विश्वास है | १९९६ में कविता लिखना बंद करने के बाद अब २०१० में पुन: लिखना शुरू किया है |
जहाँ बंद करने का कारण ये था, कि संतों (नानक, कबीर सरीखे) कि वाणी पढ़ने के बाद जाना शब्दों के गठजोड़ को बुद्धि के सहारे से भावों की अभिव्यक्ति करना, अपने अहम् को जीवित करने के आलावा कुछ भी नहीं है, जबकि संतों की वाणी सीधे ही उनकी दया- मौज का प्रकटीकरण है, जो कि उनके द्वारा हम जीवों कि भलाई के लिए किया गया है |
और अब पुन: लिखना शुरू करने का कारण ये रहा कि नेट पर आने के बाद लालसा घर कर गई है, जो कि शरनाई में अवरोध तो नहीं है ?
राधास्वामी दयाल की दया- मौज में हरदम- हर क्षण गति उनके चरणों में दृढ होने के लिए ही हो | ये सांसारिक गति आवश्यक नहीं है | ------------राधास्वामी ! अतुल