शीर्षक -उधेड़बुन
पल-छिन , पल -छिन बीतता है दिन ,
दिन व दिन बीतता है दिन।
तू चाहे तो भी ,
और न चाहे तो भी ,
दिन को बीतना है , बीतता है दिन ,
तू क्यों थकता है ,
तू क्यों रुकता है ,
पल भर ही हंसी -ख़ुशी है ,
पल भर ही दुःख की घड़ी है,
घड़ी घड़ी कर बीतता दिन ,
पल-छिन , पल -छिन बीतता है दिन ,
दिन व दिन बीतता है दिन।
पल में कुदरत की मेहर है ,
पल में काल का कहर है ,
जो वर्तमान की बाती है ,
वो कल भूत की थाती है,
भविष्य की आशंकाओं को ,
क्यों रहा है ----गिन ,
पल-छिन , पल -छिन बीतता है दिन ,
दिन व दिन बीतता है दिन।
दिन व दिन की कीमत , कहाँ कर छुपी है ,
ये बात , कब तूने समझी है ,
कब खुद से कही है ,
दिनों की दूरी में ---------
एक दिन को जन्मा , एक दिन को मरेगा ,
क्या आशय है तेरा , किस धारणा को धरेगा ,
या सांसो की रवानगी को ,
रहता रहेगा बस-------गिन ,
पल-छिन , पल -छिन बीतता है दिन ,
दिन व दिन बीतता है दिन ।
********
radhaswami !
पल-छिन , पल -छिन बीतता है दिन ,
दिन व दिन बीतता है दिन।
तू चाहे तो भी ,
और न चाहे तो भी ,
![]() |
अतुल कुमार मिश्रा |
तू क्यों थकता है ,
तू क्यों रुकता है ,
पल भर ही हंसी -ख़ुशी है ,
पल भर ही दुःख की घड़ी है,
घड़ी घड़ी कर बीतता दिन ,
पल-छिन , पल -छिन बीतता है दिन ,
दिन व दिन बीतता है दिन।
पल में कुदरत की मेहर है ,
पल में काल का कहर है ,
जो वर्तमान की बाती है ,
वो कल भूत की थाती है,
भविष्य की आशंकाओं को ,
क्यों रहा है ----गिन ,
पल-छिन , पल -छिन बीतता है दिन ,
दिन व दिन बीतता है दिन।
दिन व दिन की कीमत , कहाँ कर छुपी है ,
ये बात , कब तूने समझी है ,
कब खुद से कही है ,
दिनों की दूरी में ---------
एक दिन को जन्मा , एक दिन को मरेगा ,
क्या आशय है तेरा , किस धारणा को धरेगा ,
या सांसो की रवानगी को ,
रहता रहेगा बस-------गिन ,
पल-छिन , पल -छिन बीतता है दिन ,
दिन व दिन बीतता है दिन ।
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radhaswami !
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