देशभक्ति
न तो स्वाभाव है,
न आदत,
न लाचारी, न मज़बूरी |
इसमें न तो ये जमीन आती है,
न ये लोग आते हैं,
न ही ये वृक्ष, मकान, आँगन,
न नदी-नाला, पहाड़, समतल मैदान,
कुछ भी नहीं-
स्वरूपित नहीं करता इसे,
फिर भी]
यह है एक अहसास -
मेरा देश है, मेरा है देश,
मेरे पास,
कितना पास ?
शायद, सबसे ज्यादा पास ||
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राधास्वामी ! - अतुल मिश्र
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