न जानते, अनायास ही काल त्राण भोग रहे ||
गति खोकर, मति खोकर भोग की अभिलिप्सा में, आत्मोउदभव अनुभूति खोकर,
दयापात्र देखो तो, स्वयं विनाश बीज बो रहे ||
अज्ञानता या अनजानना, बीज बबूल से बबूल ही उपजना,
तात्क्षणिक सुखबोध की उपलब्धि यह कैसी ,
प्रकाशपुंज सूर्य से तम अभिवृद्धि यह कैसी,
धर्म रहित प्राण ये, मात्र पशुता ढ़ो रहे,
या
कर्म- फल के साये तले, निर्बुद्धि बस बह रहे ||
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अतुल, राधास्वामी !
radhaswami
ReplyDeletethodi kathin hai.. kyuki sach hai..