Tuesday, April 12, 2011

कचोट

कचोट एक मन उठी,
कसक एक मन उठी |
क्यों लुट गया वो देश पर,
क्यों लुट गया था वो देश पर,
अनाम शहीद, बेफिकर, बेजिकर |
जबकि एक ये,
क्यों लूटता गया देश को,
कैसे लूट सका देश को |
नामी, नामचीन,
सांप एक आस्तीन,
थी सबको खबर,
था जिकरों में जिकर,
मगर सभी बेपरवाह- बेखबर,
मूढ़ बने आँख मूंदकर |
सो  
कचोट एक मन उठी,
कसक एक मन उठी |
क्यों मूक मैं, क्यों मूक वो,
हे! अंतर मन मुझे झिंझोड़ दो |
देश मेरा, मैं देश को,
मन अंतर अहसास दो |
आत्म दो, विश्वास दो,
ये मन अंतर साहस दो |
पूछ संकू आंखों में आँखे डालकर,
जबाब दो, जबाब दो ||
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राधास्वामी ! अतुल 

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