चंद रोज जीता जगत में,
या,
जिन्दगी चंद रोज की |
है अबूझ उद्देश्य इसका क्या,
या,
सिर्फ जिन्दा रहने के निमित्त की |
है प्रश्न जब तक जिन्दगी,
आदमी क्यों मौन है |
दुर्लभ है जिज्ञासा दिशा,
या,
दिशाभ्रम है जिन्दगी |
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यह मेरी प्रिय कविता है,
अतुल, राधास्वामी !
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