कह गया है मुझसे आकर,
आने वाला कल।
आऊंगा मैं द्वार तुम्हारे ,
होना नहीं विकल।
जरुरत तुमको मेरी सदा रही है,
बनके तुम्हारा दर्पण मैंने,
तस्वीर तुम्हारी रची है।
जो चाहे रंग दे दो इसको,
चाहे मिटादो इसको।
आत्मबल की पकड़ो कूंची,
छांटो जीवन के रंगों की सूची।
रंगों के निर्णायक तुम हो,
तुम सजीव, चित्र भी तुम हो।
मैं तुम्हारे सम्मुख हूँ, खाली कोरा पन्ना।
हाथ तुम्हारे प्रयत्न तुम्हारा, चित्र बनालो अपना॥
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अतुल, राधास्वामी !
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