नदी खुद बहकर पहुंची थी, दरवाजे ।
कि,
सींच लूँ , मैं आँगन के पौधे।
मगर,
क्यों कर, स्पर्श करूँ
बहकर आया पानी
जबकि,
आँगन में होनी थी, वर्षा अभी
अब,
आँगन भी वही था,
आकाश भी वही था,
और
वही थी आस |
किन्तु,
अब नदी नहीं थी, दरवाजे के पास |
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राधास्वामी ! अतुल
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